श्री श्री श्री १००८ गोपाल गुरु

श्रीमन्महाप्रभु के प्रिय शिष्य एवं गुरु

श्रीगोपाल गुरु

प्रारंभिक जीवन

श्रीगोपाल गुरु का जन्म श्रीमुरारि पण्डित के घर में हुआ था। इनका पूर्व नाम मकरध्वज था। बाल्यकाल से ही इनमें आध्यात्मिक प्रवृत्ति के दर्शन होते थे। इन्होंने श्रीमन्महाप्रभु के प्रिय भक्त श्रीवक्रेश्वर पण्डित से दीक्षा-शिक्षा ग्रहण की थी।

बचपन से ही श्रीगोपाल श्रीमन्महाप्रभु की सेवा में लगे रहते थे। उनकी सेवा भावना और निष्ठा देखकर सभी प्रभावित होते थे। वे महाप्रभु के सानिध्य में रहकर आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करते रहे।

महाप्रभु के साथ समय

एक दिन श्रीमन्महाप्रभु लौकिक-लीलावश शौचादि शारीरिक-क्रिया के लिये जंगल में गये, श्रीगोपाल भी जल-पात्रादि लेकर उनके साथ थे। श्रीमहाप्रभु ने अपनी जिह्वा को दाँतों से मजबूती से दबा रखा था उस समय। क्योंकि उनकी जिह्वा पर हर समय कृष्णनाम नृत्य करता था।

श्रीगोपाल ने श्रीमहाप्रभु से कौतुकवश पूछा-"प्रभो ! आपने बहिर्देश-गमन के समय अपनी जिह्वा को दाँतों से क्यों दबा रखा था?" श्रीमहाप्रभु ने कहा- 'बहिर्देशगमन (शौचादि) के समय बोलना, मुख खोलना निषिद्ध है। मेरी जिह्वा को नामोच्चारण का ऐसा अभ्यास पड़ गया है कि उस अवसर भी नाम-विनोद में नाचने लगती है, अतः मैं उसे दाँतों से मजबूती से दबाकर रखता हूँ।'

"आप तो स्वतन्त्र ईश्वर हैं। किन्तु मेरी एक जिज्ञासा है साधारण मनुष्य को लेकर। वह यह कि यदि बाह्यकृत्य के समय ही प्राकृत मनुष्य के प्राण चले जायें, तो उसके प्राण नाम लेते-लेते तो न जा सके। मरण के समय वह नाम ग्रहण से वंचित रह जायेगा। उसकी क्या गति होगी?"

गुरु पद की प्राप्ति

बालक गोपाल के मुख से ऐसा अमृत-भाषण सुनकर श्रीमहाप्रभु अति हर्षित हुए और बोले - "गोपाल ! तुमने बहुत मार्मिक बात कही है-नामग्रहणकारियों के लिये। आज से तुम 'गुरु' पद के अधिकारी हुए और तुम्हारा नाम - 'गोपाल गुरु' हो गया।"

इस प्रकार श्रीगोपाल ने अपनी गहन आध्यात्मिक समझ और नाम महिमा के प्रति गहरी अंतर्दृष्टि के कारण गुरु पद प्राप्त किया। उनका यह प्रश्न नाम-साधना करने वाले भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मार्गदर्शन सिद्ध हुआ।

"नाम संकीर्तन ही सबसे बड़ी साधना है, जो मनुष्य को सभी दुखों से मुक्त करके परम आनंद की प्राप्ति कराती है।"

आध्यात्मिक विरासत

श्रीगोपाल गुरु ने अपना संपूर्ण जीवन भगवान की सेवा और नाम संकीर्तन में समर्पित कर दिया। उनकी शिक्षाएं और उपदेश आज भी भक्तों के लिए मार्गदर्शन का काम करते हैं। उन्होंने नाम के महत्व को विशेष रूप से प्रतिपादित किया और सिखाया कि मनुष्य को हर परिस्थिति में नाम स्मरण करते रहना चाहिए।

श्रीगोपाल गुरु की कृपा से अनेक भक्तों ने आध्यात्मिक उन्नति की और भगवद्प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया। उनकी शिष्य परंपरा आज भी जारी है और उनके द्वारा स्थापित मार्ग पर चलकर अनेक भक्त भगवान की भक्ति में लीन हैं।

Gopal Guru Sewa Trust