श्री गोपाल गुरु सेवा संस्थान

वृन्दावन: अखंड भक्ति की नित्य धारा

अखंड संकीर्तन

95 वर्षों से निरंतर चल रहा है भजन

गुरु का लंगर

सभी के लिए निःशुल्क भोजन सेवा

हमारे बारे में

वृन्दावन की पावन भूमि में एक ऐसा अद्भुत स्थान है जहाँ समय थम-सा गया है, किंतु भजन की धुन कभी नहीं रुकी। श्री गोपाल गुरु सेवा संस्थान में आपका स्वागत है - यह केवल एक संस्था नहीं, बल्कि निरंतर प्रवाहमान आध्यात्मिक ऊर्जा का एक जीवंत केंद्र है। लगातार 95 वर्षों से, यहाँ का 24 घंटे, 365 दिन चलने वाला अखंड संकीर्तन इस स्थान को संपूर्ण विश्व की एक अनूठी और ऐतिहासिक पीठ बनाता है।

अखंड संकीर्तन

एक ऐसा मधुर भजन जो कभी समाप्त नहीं हुआ। एक ऐसी प्रार्थना जिसने कभी विराम नहीं लिया। यहाँ की यही सच्चाई है। दशकों से, हर पल, हर क्षण, इस पवित्र भूमि पर एक ही महामंत्र गूंजता है:

हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे ।।

यह दिव्य संगीत एक पवित्र नदी की तरह लगातार बह रहा है, जो शांति और आनंद का एक अद्वितीय वातावरण बनाता है। यही ईश्वर के प्रति हमारी प्राथमिक और सबसे बड़ी सेवा है।

ऐतिहासिक विरासत

यह पावन भूमि है। हमारा संस्थान 16वीं शताब्दी के महान संत, श्री गोपाल गुरु गोस्वामी जी की पुष्प समाधि स्थल है, जो भक्ति आंदोलन के प्रणेता श्री चैतन्य महाप्रभु के प्रत्यक्ष शिष्य थे। वृन्दावन की भक्ति परंपराओं को स्थापित करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। यहाँ आना, एक आध्यात्मिक विरासत की छाया में चलने और एक कालातीत परंपरा का आशीर्वाद प्राप्त करने के समान है।

16वीं शताब्दी

श्री गोपाल गुरु गोस्वामी जी ने इस पावन स्थल की स्थापना की

1930

अखंड संकीर्तन की शुरुआत हुई

वर्तमान

95 वर्षों से निरंतर जारी है अखंड संकीर्तन

हमारी सेवाएं

सच्ची सेवा के सिद्धांत का पालन करते हुए, हम निम्नलिखित सेवाएं प्रदान करते हैं:

गुरु का लंगर (भंडारा)

सभी आगंतुकों, तीर्थयात्रियों और साधकों को प्रतिदिन प्रेम से निःशुल्क, पौष्टिक और प्रसादी शाकाहारी भोजन परोसा जाता है।

साधु-संत सेवा

हम संन्यासियों, साधुओं और समर्पित भक्तों के लिए एक सम्मानजनक ठहरने का प्रबंध करते हैं।

निःशुल्क आवास

सच्चे साधक और छात्र हमारे साधारण आवासों में निःशुल्क रह सकते हैं, पवित्र वातावरण में डूब सकते हैं और अपने आध्यात्मिक अभ्यास पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।

दान करें

दान सनातन धर्म में सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्यों में से एक है। गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं कि दान सात्विक होना चाहिए - ऐसा दान जो धर्म के अनुसार, सही समय पर, सही स्थान पर और योग्य व्यक्ति को बिना किसी बदले की期待ा के दिया जाए। साधु-संत की सेवा में दिया गया दान सबसे उत्तम माना जाता है, क्योंकि इससे न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति भी होती है। आपका दान इस पावन कार्य को चलाने में सहायता करेगा।